Monday, 5 November 2018

द्वन्द

कभी कभी अजीब रिश्ता ज़िन्दगी में बनता है, 

हाँ बनता है हम चाहते नही हैं बनाना पर बनता है, 

और वक़्त देने के बाद समझ आता है कि ये होना ही था, 

अजीब सी बेचैनी है, और एक सोच की इतने सारे दिनों में एक घटना भी अगर न होती तो क्या ये होता? 

या शायद कुछ भी न होता पर ये ज़रूर होता।

अब सोचने से कुछ होगा नही, और सामने वाला कितना समझता है ये तो उसकी हरकते बताती हैं, 

फिर भी वो उस द्वन्द में होगा शायद जो नही होना चाहिए, और अगर नही है तो वो क्यों है? 

उसके होने के बाद भी नही है तो एक और सवाल की ऐसा क्यों नही है?

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