Monday, 24 October 2011


कुछ दोस्तों की याद में रोया हु
कुछ दोस्तों की वजह से रोया हु

दोस्त वो नहीं जो दोस्ती में काम आये
दोस्त वो ज़रूरत में काम आये

ज़िन्दगी में कुछ लम्हों में बहुत कुछ पाया
ज़िन्दगी में गम के साथ दोखा भी खाया

इतना ज्यादा रोया हु मै यहाँ
आसुओ से प्यास बुझा लिया

हम रो कर भी गम हल्का न कर सके
उन्होंने हस कर हर गम छिपा लिया

Friday, 14 October 2011

....कुछ ऐसा ही.........

 रोज मर्रा की ज़िन्दगी में कुछ ऐसे भी लोग मिलते है,जिनको  
देखने से पहले तो आप के दिमाग में 
कई सवाल आते हैं
और उसके बाद अचानक एक आवाज़...
"इसको को तो जनता हूँ मै, या 
ये तो वही है जो उस दिन  देखा था "
और हमे रोज एक ऐसा शख्स मिलता हैं 
जो कि आप के अपने किसी से मिलता हुआ,
या किसी अज़ीज़ की याद दिलाता है.
शायद वो एक सपने की तरह होता है,
या एक याद जो मन में बस जाती है 
और नही जाती है,
नही यादें कभी कहीं नहीं जातीं है,
और शायद इसी लिए शायद.........
वो अज़ीज़ हमें हर रोज़ नज़र आते हैं...
हर रोज़.......... 

Monday, 3 October 2011

.......जीने का नशा.......

 हमेशा ही लोग जीने के लिए कुछ अलग या आधुनिक  या दुनियां से परे अनुभव को आजमाते है,या कहूँ की इस्तेमाल करते है.
कोई कितना भी, कैसा भी, 
किसी को भी अपनाकर देख ले,
हर कोई अपनी उस छवि को और बढ़ाना चाहता है, 
जिसमे वो पारंगत है.
पर एक सवाल मन में फिर भी रहता है, 
अपने उसी दाएरे में रहना क्या एक जीने की कला है या 
कुछ और,?
"मुझे जो लगा शायद वो अलग न हो, अध्भुद न हो पर............."
कुछ लोग हर वक्त सीखते है, जीने के लिए सीखते हैं,
या सीख कर जीते हैं, क्यों की जीना पड़ता है.
और कुछ ये बोल कर जीते है की 'मै जैसा हूँ वैसा हूँ,नहीं बदलना,'
सबकी अपनी कला है,
लेकिन सभी लोग सीख कर ही बदलते 
है, .