आखिर क्यों,
क़ानून में भी सजा सिर्फ उसे ही मिलती है,
जिसने अन्याए किया हो,
क़ानून में भी सजा सिर्फ उसे ही मिलती है,
जिसने अन्याए किया हो,
पर ज़िन्दगी में होती रोज़ की समस्या का
कोई निदान नहीं होता,
कोई निदान नहीं होता,
हम जिसकों अपना मानते है
वो ही हमें छोड़ कर जाते हैं,
वो ही हमें छोड़ कर जाते हैं,
क्यों की कोई गैर तो ऐसा नहीं करेगा
क्यों की वो इतना पास, या
इतना अज़ीज़ नहीं होगा.
क्यों की वो इतना पास, या
इतना अज़ीज़ नहीं होगा.
हमें अपनों ने ही धोखा दिया,
कोई मलाल नहीं, हाँ थोडा सा अफ़सोस जरूर है,
कोई मलाल नहीं, हाँ थोडा सा अफ़सोस जरूर है,
आखिर क्यों, शायद ये एक सजा है,
पर क्यों?
पर क्यों?
ऐसी सजा क्यों?
उसको अपनी गलती का पता तो होना चाहिए,
तो शायद आगे ऐसी गलती ना करे वो,
तो शायद आगे ऐसी गलती ना करे वो,
लेकिन लोग सिर्फ बदल जाते हैं,
और वो अकेला, अपनी गलती से अनजान,
या बिना गलती के सजा भुगतता है
आखिर क्यों?

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