......एक राजा था, जो की हीरे और
जवाहरात का बहोत शौक़ीन था,
जवाहरात का बहोत शौक़ीन था,
उसके पास देश भर के सभी अमीर लोग आते
और जवाहरात देख कर जाते,
और जवाहरात देख कर जाते,
कुछ दिनों बाद राजा को लगा की उसके जेवरात
कम हो रहे हैं,
कम हो रहे हैं,
राजा ने दखा, उनका मुआइना किया,
राजा को उसमे जेवरात कम लगे तो
राजा को उसमे जेवरात कम लगे तो
राजा ने अपने विश्वसीय लोगों को बुलाया
जिनके बिना सहयोग के राजा कुछ नहीं करता था.
जिनके बिना सहयोग के राजा कुछ नहीं करता था.
जेवरात तो गयाब हुए पर पता नहीं किसने लिए हैं.
जो लोग देखने आए वो ले कर नही जा सकते
क्यों की सिपाही थे,
क्यों की सिपाही थे,
और वो पूरी जांच के बाद ही
किसी को अन्दर या बाहर आने देते.
किसी को अन्दर या बाहर आने देते.
तो जवाहरात ले कर कौन गया?
आखिर कौन?
इशारा साफ था वही रजा के विश्वसनीय लोग, जिन्होंने विश्वासघात किया,
सब कुछ होने के बाद भी अगर
राजा के साथ ऐसा धोखा किया तो क्यों?
राजा के साथ ऐसा धोखा किया तो क्यों?
क्या उनके पास कोई कमी थी,
जो की रजा ने पूरी नही की.
जो की रजा ने पूरी नही की.
या लालच, या मन में छल.
उस राजा के विश्वसनीय में से एक के घर से
जेवरात मिले, जो की बाहर बेचता हुआ
जेवरात मिले, जो की बाहर बेचता हुआ
पकड़ा गया...................

No comments:
Post a Comment